हिमालय की तपस्या पूर्ण करने के बाद, ३ साल की तीर्थयात्रा पर निकल पड़े। गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ, केदारनाथ, मानसरोवर, ऋषिकेश, हरिद्वार, जगन्नाथपुरी, भुवनेश्वर, श्री शैलम मीनाक्षी मंदिर (मधुराई), आंजनेय स्वामी हनुमानजी, नामाकल्प (तमिलनाडू) आदि के दर्शन करते हुए चेन्नई से नागपुर जिले में मौदा तहसील के ईजनी गांव में आगऐ ।

स्वामीजी के इस भ्रमण का हेतू भोरु बाबा की समाधी की खोज करना था, लेकिन जब ईजनी गाव में आनेपर गाव वालोंन बताया की इस गांव में एक महात्यागीजी की समाधी सुर संगम नदी के किनारे बनिहुई है ।

जब स्वामीजीने उस समाधी दर्शन किए उसीवक्त उन्हे तुरंत महसूस हुआ की यह समाधी हमारे महात्यागी परंपरा से कोई महापुरुष की समाधी है । यही करन से स्वामीजीने इस स्थान पर रुकने का निश्चय किया ।

स्वामीजीने उस समाधी जीर्णोद्धार गांववालों के साथ किया । समाधी के करीब स्वामीजी एक झोपडी में रहने लगे, कई अडचनो को सहते हुए स्वामीजीने तारिक ५ जनवरी २००१ से अखंड ज्योति और अखंड धूनी की समाधी के पास शुरवात कर दी ।

बादमे स्वामीजीने द्वारा निम्नलिखित संकल्पोकी पूर्ति हुई ।

  • वर्ष २००३ के चैत्र महीनेमे घटस्थापना के पावन अवसर पर दुर्गामाता की मूर्ति की स्थापना की ।

  • वर्ष २००६ के हनुमान जयंती के पावन अवसर पंचमुखी पर हनुमानजी की मूर्ति स्थापना की ।

  • वर्ष २००७ में गौशाला का निर्माण किया ।

  • वर्ष २००६, २००७, २००८, २००९ में विश्वशांती और जनकल्यान के लिए चार महायज्ञो का अनुष्ठान किया ।